लॉकडाउन के कारण पैदा हुई भूख और बेरोजगारी के दर्द ने दिल्ली से पलायन कर अपने अपने गांव-घर के लिए निकले लोगों के हुजूम में सुरक्षित दूरियां तो भुलाई हैं लेकिन धर्म-जाति के भेद की दूरियां भी एकदम मिटा दी हैं। तकलीफ और भूख में सब एक साथ होकर चल पड़े हैं। जिन लोगों का खुद का कोई सहारा नहीं है, वे दूसरे का सहारा बनते हुए अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
आजमगढ़ के सादिक के साथ लगभग बीस लोगों का जत्था है, जो किसी भी हाल में दिल्ली छोड़ अपने गांव पहुंच जाना चाहता है। वे सब आनंद विहार बस अड्डे पर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
आठ-दस घंटे के लंबे इंतजार में सादिक ने अपने दोस्त अरुण तिवारी के बेटे कन्हैया को भीड़ में कुचलने के डर से अपने कंधे पर उठा रखा है, तो अरुण अपने साथियों के लिए पानी का इंतजाम कर रहे हैं। सादिक के बेटे सलमान ने गीता की अंगुली पकड़ रखी है क्योंकि उसे भी इस भीड़ में दब जाने का डर सता रहा है।
सादिक ने अमर उजाला को बताया कि वे सब आजमगढ़ के आसपास के गांव के रहने वाले हैं। सभी आनंद पर्वत पर एक मोजे की फैक्ट्री में काम करते हैं। लेकिन पिछले 15 दिन से फैक्ट्री बंद पड़ी है और तभी से पिछला कमाया बैठकर खा रहे हैं।
लेकिन अब इस कामबंदी का जल्द हल निकलता उन्हें नहीं दिख रहा है, लिहाजा उन सबके लिए अब यहां रहना संभव नहीं रह गया है और वे सब जल्द से जल्द अपने गांव निकल जाना चाहते हैं। कम से कम उन्हें वहां खाने का कष्ट तो नहीं होगा।